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मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है ? मकर संक्रांति कैसे मनाए?

मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है  

    हमारे भारतवर्ष में पूरे वर्ष भर प्रतिदिन कोई न कोई त्यौहार मनाया ही जाता है। यहां विभिन्न धर्मों, मान्यताओं और समुदायों के लोग  निवासरत हैं जिसके  कारण भारतवर्ष में प्रतिदिन कोई न कोई उत्सव, कोई ना कोई त्यौहार मनाया ही जाता है। इसी कड़ी में सूर्य देव को समर्पित एक त्यौहार मकर संक्रांति भी है। यह हिंदू  धर्मावलंबियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण त्यौहार होता है। 



    जब सूर्य देव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं या दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर स्थानांतरित होते हैं तब मकर संक्रांति का पावन त्यौहार मनाया जाता है। इसी दिनसे सूर्य की उत्तरायण गति आरम्भ होती हैशास्त्रों में उत्तरायण की अवधिको देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओंकी रात के तौर पर माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन के लिए ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवता गण कि पृथ्वी लोक पर विचरण करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि, जो मनुष्य मकर संक्रांति पर देह का त्याग करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह जीवन-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है।

     सनातन धर्म में जबभगवान सूर्यदेव एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे संक्रांति कहा जाता है। संक्रांति का नामकरण उस राशि से होता है, जिस राशि में सूर्यदेव प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव धनु राशि से अपने पुत्र शनि की राशि मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति पर्व कानिर्धारण सूर्य की गति के अनुसार होता है।

     भारतीय ज्योतिष के अनुसार बारह राशियां मानी गयी हैं: मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन,

          जब सूर्य धनु राशि से (दक्षिणायन) मकर राशि में प्रवेश कर उत्तरायण होता है तो मकर संक्रांति मनायी जाती है। 

      मकर संक्रांति के पावन अवसर पर स्नान एवं दान का विशेष महत्व माना गया है। इस कारण से मकर संक्रांति के दिन श्रद्धालुओं की भीड़ हरिद्वार, काशी आदि तीर्थों पर स्नान हेतु उमड़ पड़ती है। श्रद्धालु इन स्थानों पर पहुंचकर स्नान दान का पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। शास्त्रों केअनुसार मकर संक्रांति के दिन कियागया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है।  मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की पूजा एवं उपासना की जाती है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव के पूजन में श्वेतार्क एवं लाल रंग के पुष्प का विशेष महत्व होता है। इस दिन सूर्य की पूजा करने के साथ साथ सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए। मकर संक्रांति का यह पावन पर्व प्रकृति, ऋतुपरिवर्तनऔरखेतीसेजुड़ाहुआहै।

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हमारे चैनल के नाम :-

1. Alok Tiwari ASTROLOGER

2. HIndu Teerth Sthal.

      अधिकांश हिंदू त्यौहार चंद्रमा की स्थिति के अनुसार मनाये  जाते हैं,  लेकिन मकर संक्रांति का त्यौहार सूर्य की गति के अनुसार मनाया जाता है। इसलिए हिंदू पंचांग के अनुसार मकर संक्रांति हेतु कोई निश्चित तिथि घोषित नहीं की जा सकती है।

      मकर संक्रांति के दिन से सर्दी के मौसम का अंत माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन से जलवायु में परिवर्तन होने लगता है। इस दिन से रातें छोटी व दिन बड़े होने लगते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ने लगते हैं, जिसके कारण इस दिन से ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ भी माना जाता है। सूर्य के प्रकाश में गर्मी और तपन बढ़ने लगती है।


मकर संक्रांति के विभिन्न नाम

     भारत के अलग-अलग हिस्से में मकर संक्रांति विभिन्न नामों  से जाना जाता है। उत्तर भारत में 'मकर सक्रान्ति’, पंजाब और हरियाणा में लोहडी, उतराखंड में उतरायणी, गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण, कर्नाटक में संक्रांति, तमिलनाडु और केरल में पोंगल, उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। सिंधी लोग इस पर्व को 'तिरमौरी' कहते है

मकर संक्रांति से जुड़ी पौराणिक कथाएं।

प्रसंग 1:चूंकि, शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते हैं। अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।

प्रसंग 2: मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।

प्रसंग 3: महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए, सूर्य के मकर राशि मे आ जाने तक इंतजार किया था।

मकर संक्रांति पर परंपराएं

     हिंदू धर्म में मीठे पकवानों के बगैर हर त्यौहार अधूरा सा है। मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ से बने लड्डू और अन्य मीठे पकवान बनाने की परंपरा है। तिल और गुड़ के सेवन से ठंड के मौसम में शरीर को गर्मी मिलती है और यह स्वास्थ के लिए लाभदायक है। मकर संक्रांति के मौके पर सूर्य देव के पुत्र शनि के घर पहुंचने पर तिल और गुड़ की बनी मिठाई बांटी जाती है। मकर संक्रांति के मौके पर पतंग उड़ाने की भी परंपरा है। गुजरात और मध्य प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में मकर संक्रांति के दौरान पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर बच्चों से लेकर बड़े तक पतंगबाजी करते हैं।

     मकर संक्रांति और तिल



ज्योतियों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन तिल का उपयोग : प्रकार से करना चाहिए।

तिल के तेल से शरीर पर मालिश करके स्नान,

जल में तिल डालकर स्नान,

हवन सामग्री में तिल का उपयोग,

तिलयुक्त जल का सेवन,

तिल गुड़युक्त मिठाई भोजन का सेवन,

तिल का दान,

इससे शारीरिक, धार्मिक लाभ तथा पुण्य प्राप्त होते हैं। 

 

 मकर संक्रांति कैसे मनाए

* प्रातःकाल उबटन लगाकर तीर्थ के जल से मिश्रित जल से स्नान करें।

* यदि तीर्थ का जल उपलब्ध न हो तो दूध, दही से स्नान करें।

* तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है।

* स्नान के उपरांत सूर्य देव की आराधना, दर्शन करके उन्हें अर्घ्य दें।

* यथाशक्ति अनुसार योग्य ब्राह्मण को दान दें।

* गाय को चारा खिलाएं।

* तिल मिश्रित जल से महादेवजी का अभिषेक करें।

* गरीबों को यथाशक्ति वस्त्र दान करना श्रेष्ठ रहेगा।

* तांबे के लोटे में कुंकू, रक्त चंदन, लाल पुष्प आदि मिश्रित जल से पूर्व मुखी होकर तीन बार सूर्य को जल दें। पश्चात अपने स्थान पर ही खड़े होकर सात परिक्रमा करें। उसके बाद सूर्याष्टक, गायत्री मंत्र तथा आदित्य हृदय स्रोत का पाठ करें।

* अपने परिचितों, संबंधियों मित्रों आदि को उनकी पात्रता तथा अपनी क्षमता अनुसार तिल-गुड़ से बने खाद्य पदार्थ, खिचड़ी, वस्त्र, सुहाग सामग्री, मुद्रा आदि का दान करें।

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